संबंध: एक लेख
आज रिश्तों में पड़ते अंतराल और उसमें आते बदलाव को एक अंधा आदमी भी जान जाता है क्योंकि रिश्तों को निभाने के लिए या रिश्तों को समझने के लिए आंखों की आवश्यकता नहीं होती । एहसास एक ऐसा भाव है जो अपनों को गहराइयों से जानने में हमारी सहायता करता है।
पहले रिश्तों की परिभाषा ही कुछ और थी खून के संबंधों से लेकर मामा ,नाना,बुआ,दादी ,मौसा आदि तथा अन्य कई दूर के रिश्तों को लोग बड़े प्यार और सम्मान के साथ निभाते थे और शायद ,इसी कारण लोग एक दूसरे से इतना जुड़े हुए होते थे। तब लोगों में धन सम्पत्ति को लेकर कोई लोभ नहीं था, सब मिल बांट कर खुशी - खुशी रहते थे।
पर अगर बात करें आज के उत्तर आधुनिक समय की, तो इस समय संबंधों का कैसा ताना- बाना है ,इससे हम सब बाकिफ हैं। बाकिफ ही नहीं ,हम भी इसी समय से गुज़र रहे हैं। पारिवारिक माहौल से भली - भांति परिचित हैं। आज रिश्तों में मिठास की जगह खट्टास - सी आ गयी है जिससे दिन व दिन रिश्तों में सड़न आ रही है। भाई - भाई एक दूसरे से ऐसे मिलते हैं जैसे उनसे बड़ा उनका दुश्मन इस दुनिया में ओर कोई है ही नहीं । यह माहौल खुदा का बनाया नहीं बल्कि हम ही लोगों का बनाया हुआ है,,,,,,।
आज हमें अपनों से कोई मतलब नहीं ,अगर मतलब है तो अपनों की दौलत से, उनकी सम्पत्ति से। कहते है न कि जब पाप का घड़ भर जाता है तो उसका फूटना निश्चित होता है उसी प्रकार आज के समाज में जो रिश्तों में ,अपनों में ,पारिवारिक व सामाजिक परिवेश में जो भद्दा - सा, टूटन भरा माहौल फैला हुआ है जल्द ही उसका बिखराव संभव है इसीलिए समय रहते स्वयं को, अपने रिश्तों को संभाल लेना ही समझदारी होगा। समाज भी विकसित होगा ,नहीं तो भेड़चाल तो सब चलते हैं।
धन्यवाद ।
*****अनु कौंडल***
Gunjan Kamal
30-Jun-2022 01:39 AM
बहुत खूब
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